नया नियम : येशु की परीक्षा और सेवा का आरंभ (मत्ती ४:१-१७) - ब्लॉग १
येशु की परीक्षा (मत्ती ४:१-११)
मत्ती ४:१-११ में येशु मसीह की परीक्षा का वर्णन है, जो उनके आत्मिक बल को प्रदर्शित करता है। शैतान द्वारा दी गई परीक्षाओं के माध्यम से हमें यह सिखने को मिलता है कि कैसे हम आत्मिक रूप से मजबूती से खड़े रह सकते हैं। येशु ने तीन बार शैतान के प्रलोभनों को ठुकराया और हमें यह सिखाया कि परमेश्वर का वचन हमारी सबसे बड़ी शक्ति है।
१.आत्मा द्वारा जंगल में ले जाना
"तब आत्मा यीशु को जंगल में ले गया ताकि इब्लीस से उस की परीक्षा हो।" (मत्ती ४:१)
पवित्र आत्मा येशु को जंगल में ले गया, जहाँ उन्हें परीक्षा में डाला जाना था। यह हमें यह सिखाता है कि आत्मिक परीक्षण और संघर्ष कभी-कभी हमें परमेश्वर की इच्छा के अनुसार ही अनुभव करने होते हैं।
२.चालीस दिन और रात का उपवास
"वह चालीस दिन, और चालीस रात, निराहार रहा, तब उसे भूख लगी।" (मत्ती ४:२)
येशु ने चालीस दिन और रात उपवास किया, जो उनकी आत्मिक तैयारी का प्रतीक है। उनका उपवास हमें यह सिखाता है कि आत्मिक बल प्राप्त करने के लिए हमें भौतिक आवश्यकताओं से ऊपर उठना चाहिए। यह एक कठिन परीक्षा का समय था, जहां शैतान उनके भौतिक कमजोरी का फायदा उठाने की कोशिश करता है।
३.पहली परीक्षा: पत्थरों को रोटी में बदलने की चुनौती
"तब परखनेवाले ने पास आकर उस से कहा, 'यदि तू परमेश्वर का पुत्र है, तो कह दे, कि ये पत्थर रोटियाँ बन जाएँ।'
यीशु ने उत्तर दिया: 'लिखा है, मनुष्य केवल रोटी ही से नहीं, परन्तु हर एक वचन से जो परमेश्वर के मुख से निकलता है, जीवित रहेगा।'" (मत्ती ४:३-४)
पहली परीक्षा में, शैतान ने येशु की भूख का फायदा उठाने की कोशिश की। उसने येशु से कहा कि अगर वह परमेश्वर का पुत्र है, तो वह पत्थरों को रोटी में बदल सकता है। येशु ने उत्तर दिया कि मनुष्य केवल भौतिक भोजन से नहीं, बल्कि परमेश्वर के वचन से जीवित रहता है। यह जवाब हमें यह सिखाता है कि हमारी आत्मिक आवश्यकताएं भौतिक आवश्यकताओं से अधिक महत्वपूर्ण हैं।
४.दूसरी परीक्षा: मंदिर से कूदने का प्रलोभन
"तब इब्लीस उसे पवित्र नगर में ले गया और मन्दिर के कंगूरे पर खड़ा किया, और उससे कहा, 'यदि तू परमेश्वर का पुत्र है, तो अपने आप को नीचे गिरा दे; क्योंकि लिखा है: 'वह तेरे विषय में अपने स्वर्गदूतों को आज्ञा देगा, और वे तुझे हाथों–हाथ उठा लेंगे; कहीं ऐसा न हो कि तेरे पाँवों में पत्थर से ठेस लगे।'
यीशु ने उससे कहा, 'यह भी लिखा है: 'तू प्रभु अपने परमेश्वर की परीक्षा न कर।'" (मत्ती ४:५-७)
यहां शैतान ने येशु को आत्मिक अभिमान में लाने की कोशिश की, लेकिन येशु ने स्पष्ट रूप से उत्तर दिया कि परमेश्वर की परीक्षा लेना सही नहीं है। यह हमें सिखाता है कि हमें अपनी आस्था में विश्वास करना चाहिए और किसी चमत्कार की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए।
५.तीसरी परीक्षा: संसार की महिमा का प्रलोभन
"फिर इब्लीस उसे एक बहुत ऊँचे पहाड़ पर ले गया और सारे जगत के राज्य और उसका वैभव दिखाकर उससे कहा, 'यदि तू गिरकर मुझे प्रणाम करे, तो मैं यह सब कुछ तुझे दे दूँगा।' तब यीशु ने उससे कहा, 'हे शैतान, दूर हो जा; क्योंकि लिखा है: 'तू प्रभु अपने परमेश्वर को प्रणाम कर, और केवल उसी की उपासना कर।'" (मत्ती ४:८-१०)
तीसरी परीक्षा में, शैतान ने येशु को संसार की सारी महिमा और वैभव का प्रलोभन दिया, यदि वे उसे प्रणाम करते। येशु ने फिर से परमेश्वर की सच्चाई की ओर ध्यान दिलाया और कहा कि केवल परमेश्वर की उपासना होनी चाहिए। यह हमारे लिए स्पष्ट संदेश है कि संसार की भौतिक वस्तुएं परमेश्वर की उपासना से अधिक महत्वपूर्ण नहीं हैं।
६.स्वर्गदूतों की सेवा
"तब शैतान उसके पास से चला गया, और देखो, स्वर्गदूत आकर उसकी सेवा करने लगे।" (मत्ती ४:११)
परीक्षा के अंत में, स्वर्गदूत येशु की सेवा करने के लिए आए। यह दर्शाता है कि जब हम परमेश्वर के मार्ग पर अडिग रहते हैं, तो हमें अंततः उसकी सहायता और आशीर्वाद प्राप्त होता है।
येशु की परीक्षा का यह खंड हमें सिखाता है कि कठिनाइयों और परीक्षाओं के समय में भी हमें परमेश्वर के वचन पर विश्वास करना चाहिए। यह हमें यह भी सिखाता है कि आत्मिक बल के लिए भौतिक आवश्यकताओं से ऊपर उठना आवश्यक है।
येशु की सेवाकारी का आरंभ (मत्ती ४:१२-१७)
मत्ती ४:१२-१७ में येशु की सेवाकारी का आरंभ होता है। यह खंड येशु के गलील में जाने और उनके प्रचार की शुरुआत का वर्णन करता है। उनके द्वारा दी गई शिक्षा और उनके संदेश का प्रकाशन इसी खंड में आरंभ होता है, जिसमें उन्होंने "स्वर्ग का राज्य निकट है" का संदेश दिया।
१.यूहन्ना का बंदी बनना और येशु का गलील जाना
"जब उसने यह सुना कि यूहन्ना बन्दी बना लिया गया है, तो वह गलील को चला गया। और वह नासरत को छोड़कर कफरनहूम में, जो झील के किनारे जबूलून और नप्तली के देश में है, जाकर रहने लगा;" (मत्ती ४:१२-१३) यहां पर वर्णन किया गया है कि जब येशु को यह समाचार मिला कि यूहन्ना को बंदी बना लिया गया है, तो वह गलील की ओर गए। कफरनहूम को उन्होंने अपने प्रचार का केंद्र बनाया।
२.यशायाह की भविष्यवाणी का पूरा होना
"ताकि जो यशायाह भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा गया था, वह पूरा हो: 'जबूलून का देश और नप्तली का देश, झील की ओर का मार्ग, यरदन के पार का देश, और अन्यजातियों का गलील, जो लोग अंधकार में बैठे थे, उन्होंने बड़ी ज्योति देखी; और जो मृत्यु के देश और छाया में बैठे थे, उन पर ज्योति चमकी।'" (मत्ती ४:१४-१६)
येशु का गलील जाना और कफरनहूम में बसना यशायाह की भविष्यवाणी को पूरा करता है, जिसमें कहा गया था कि अंधकार में रहने वाले लोग ज्योति देखेंगे। येशु ने इस भविष्यवाणी को पूरा किया और उनके आने से लोगों के जीवन में प्रकाश आया।
३.येशु का प्रचार और संदेश
"उस समय से यीशु ने प्रचार करना और यह कहना आरम्भ किया, 'मन फिराओ क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आया है।'" (मत्ती ४:१७)
येशु के प्रचार का मुख्य संदेश था: "मन फिराओ, क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आया है।" यह संदेश हमें यह सिखाता है कि हमें अपने जीवन में बदलाव लाना चाहिए और परमेश्वर की ओर मुड़ना चाहिए।
मत्ती ४:१२-१७ में येशु की सेवाकारी की शुरुआत होती है। उनका प्रचार हमें यह सिखाता है कि हमें अपने जीवन में आत्मिक बदलाव लाना चाहिए और परमेश्वर की ओर लौटना चाहिए। यह खंड यह भी दर्शाता है कि येशु का आगमन एक बड़ी ज्योति के रूप में हुआ, जिससे अंधकार में रहने वाले लोगों को जीवन में प्रकाश मिला।
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प्रश्न और उत्तर-(Q & A)
प्रश्न १: येशु की पहली परीक्षा क्या थी?
उत्तर : येशु की पहली परीक्षा यह थी कि शैतान ने उन्हें पत्थरों को रोटी में बदलने की चुनौती दी, लेकिन येशु ने कहा कि मनुष्य केवल रोटी से नहीं, बल्कि परमेश्वर के वचन से जीवित रहता है। (मत्ती ४:३-४)
प्रश्न २: येशु ने शैतान की दूसरी परीक्षा का सामना कैसे किया?
उत्तर : शैतान ने येशु को मंदिर की चोटी से कूदने का प्रलोभन दिया, लेकिन येशु ने उत्तर दिया कि परमेश्वर की परीक्षा लेना उचित नहीं है। (मत्ती ४:५-७)
प्रश्न ३: तीसरी परीक्षा में शैतान ने येशु को क्या प्रलोभन दिया?
उत्तर : तीसरी परीक्षा में शैतान ने येशु को संसार की सारी महिमा और वैभव का प्रलोभन दिया, अगर वे शैतान की उपासना करते। येशु ने कहा कि केवल परमेश्वर की उपासना होनी चाहिए। (मत्ती ४:८-१०)
प्रश्न ४: येशु की सेवाकारी की शुरुआत कब हुई?
उत्तर : येशु की सेवाकारी तब शुरू हुई जब उन्होंने सुना कि यूहन्ना बंदी बना लिया गया है और वह गलील गए, जहाँ उन्होंने प्रचार करना शुरू किया। (मत्ती ४:१२-१७)
प्रश्न ५: यशायाह की भविष्यवाणी का पूरा होना किस तरह दर्शाया गया?
उत्तर : यशायाह की भविष्यवाणी के अनुसार, गलील में अंधकार में रहने वाले लोगों ने येशु के आने से बड़ी ज्योति देखी, जो उनके जीवन में प्रकाश लाने का प्रतीक है। (मत्ती ४:१४-१६)
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