बाइबिल की कहानी : नया नियम की कहानी | शैतान के प्रलोभनों का सामना : जंगल में यीशु मसीह की परीक्षा और जीत | Bible Story : New Testament Stories
आशा करते हैं कि आप सभी प्रभु के प्रेम और अनुग्रह को महसूस कर रहे होंगे। इस ब्लॉग में, हम एक प्रेरणादायक बाइबल कहानी पर चर्चा करेंगे, जो हमारे जीवन में आत्मिक मार्गदर्शन और साहस प्रदान करती है। यह कहानी है – जंगल में यीशु की परीक्षा।
यीशु के बपतिस्मा के बाद, पवित्र आत्मा ने उन्हें जंगल में ले जाया। वहाँ उन्होंने ४० दिन और ४० रात उपवास किया, और इसी दौरान शैतान ने उन्हें प्रलोभन देकर परखने का प्रयास किया। यह घटना न केवल प्रभु यीशु के जीवन का महत्वपूर्ण अध्याय है, बल्कि यह हमें भी जीवन की कठिनाइयों का सामना करने की शिक्षा देती है।
आइए, इस कहानी के तीन प्रमुख प्रलोभनों और उनसे मिलने वाले आत्मिक सबक को समझते हैं।
पहली परीक्षा: भूख का प्रलोभन
उपवास के बाद, जब यीशु भूखे थे, शैतान ने उनके पास आकर कहा: "यदि तू परमेश्वर का पुत्र है, तो इन पत्थरों को रोटी में बदल दे।"
लेकिन यीशु ने जवाब दिया: "लिखा है: मनुष्य केवल रोटी से नहीं, बल्कि हर वचन से जो परमेश्वर के मुख से निकलता है, जीवित रहेगा।"
यह उत्तर यह दिखाता है कि आत्मिक पोषण, शारीरिक जरूरतों से अधिक महत्वपूर्ण है।
दूसरी परीक्षा: घमंड और सुरक्षा का प्रलोभन
शैतान ने फिर यीशु को यरूशलेम के पवित्र नगर में ले जाकर मंदिर के कंगूरे पर खड़ा किया और कहा: "यदि तू परमेश्वर का पुत्र है, तो अपने आप को नीचे गिरा दे। क्योंकि लिखा है कि स्वर्गदूत तुम्हें बचा लेंगे।"
यीशु ने उत्तर दिया: "यह भी लिखा है: तू प्रभु अपने परमेश्वर की परीक्षा न कर।"
यह उत्तर हमें सिखाता है कि परमेश्वर पर भरोसा करना चाहिए, लेकिन उसकी परीक्षा लेने का प्रयास नहीं करना चाहिए।
तीसरी परीक्षा: शक्ति और वैभव का प्रलोभन
अंत में, शैतान ने उन्हें एक ऊँचे पर्वत पर ले जाकर संसार के सभी राज्य और उनकी महिमा दिखाते हुए कहा: "यदि तू गिरकर मुझे प्रणाम करे, तो मैं यह सब तुझे दे दूँगा।"
लेकिन यीशु ने दृढ़ता से उत्तर दिया: "हे शैतान, दूर हो जा! क्योंकि लिखा है: तू प्रभु अपने परमेश्वर को प्रणाम कर, और केवल उसी की उपासना कर।"
शैतान ने अपनी हार मान ली और वहाँ से चला गया। इसके बाद स्वर्गदूत आए और उन्होंने यीशु की सेवा की।
कहानी से प्रेरणा:
आत्मिक शक्ति: शारीरिक भूख या भौतिक इच्छाएँ आत्मिक शक्ति से बड़ी नहीं हैं।परमेश्वर पर भरोसा: हर परीक्षा का सामना हम परमेश्वर के वचनों और उनकी आत्मा के मार्गदर्शन से कर सकते हैं।
केवल परमेश्वर की उपासना: हमारे जीवन का केंद्र केवल परमेश्वर ही होने चाहिए। शक्ति, धन, और वैभव का प्रलोभन हमारे ईश्वर के प्रति विश्वास को डिगा नहीं सकता।
प्रार्थना :
हे प्रभु यीशु, आपने हमें सिखाया कि विश्वास और सत्य के साथ हम हर परीक्षा और प्रलोभन का सामना कर सकते हैं। हमें आपकी पवित्र आत्मा का मार्गदर्शन दें, ताकि हम आपकी राह पर चल सकें। हमारी कमजोरियों को आपकी शक्ति और कृपा से दूर करें। हमारे जीवन को आपकी शांति, प्रेम, और आशीर्वाद से भर दीजिए। हम यीशु के नाम में यह प्रार्थना करते हैं। आमेन।
निष्कर्ष :
इस कहानी से हमें जीवन के कठिन समय में प्रेरणा और साहस मिलता है। हमें यह याद रखना चाहिए कि परमेश्वर हमेशा हमारे साथ हैं और हमें सही राह दिखाते हैं।
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प्रश्न-उत्तर (Q & A):
जंगल में यीशु की परीक्षा: सवाल और जवाब
प्रश्न 1: यीशु को जंगल में क्यों ले जाया गया?
उत्तर: यीशु को पवित्र आत्मा ने जंगल में ले जाया ताकि वे आत्मिक रूप से तैयार हो सकें और उनकी परीक्षा ली जा सके। यह उनके बपतिस्मा के बाद हुआ, और उन्होंने वहाँ 40 दिन और 40 रात उपवास किया।
प्रश्न 2: शैतान ने यीशु को कितनी बार परखा?
उत्तर: शैतान ने यीशु को तीन बार परखा।
प्रश्न 3: पहली परीक्षा क्या थी, और यीशु ने उसका उत्तर कैसे दिया?
उत्तर: पहली परीक्षा भूख का प्रलोभन था। शैतान ने कहा कि अगर यीशु परमेश्वर के पुत्र हैं, तो वे पत्थरों को रोटी में बदल दें। यीशु ने उत्तर दिया: "मनुष्य केवल रोटी से नहीं, बल्कि हर वचन से जो परमेश्वर के मुख से निकलता है, जीवित रहेगा।"
प्रश्न 4: दूसरी परीक्षा में शैतान ने क्या किया?
उत्तर: शैतान ने यीशु को यरूशलेम के पवित्र नगर में ले जाकर मंदिर के कंगूरे पर खड़ा किया और कहा कि अगर वे परमेश्वर के पुत्र हैं, तो खुद को नीचे गिरा दें, क्योंकि स्वर्गदूत उन्हें बचा लेंगे। यीशु ने उत्तर दिया: "तू प्रभु अपने परमेश्वर की परीक्षा न कर।"
प्रश्न 5: तीसरी परीक्षा में शैतान ने क्या प्रस्ताव दिया?
उत्तर: शैतान ने यीशु को एक ऊँचे पर्वत पर ले जाकर संसार के सभी राज्य और उनकी महिमा दिखाकर कहा कि अगर यीशु उसे प्रणाम करें, तो वह यह सब उन्हें दे देगा। यीशु ने उत्तर दिया: "हे शैतान, दूर हो जा! क्योंकि लिखा है: तू प्रभु अपने परमेश्वर को प्रणाम कर, और केवल उसी की उपासना कर।"
प्रश्न 6: यीशु ने इन परीक्षाओं से हमें क्या सिखाया?
उत्तर: यीशु ने सिखाया कि: आत्मिक पोषण भौतिक जरूरतों से अधिक महत्वपूर्ण है। हमें परमेश्वर पर भरोसा करना चाहिए, लेकिन उनकी परीक्षा नहीं लेनी चाहिए। केवल परमेश्वर ही आराधना और समर्पण के योग्य हैं।
प्रश्न 7: परीक्षाओं के बाद क्या हुआ?
उत्तर: परीक्षाओं के बाद शैतान ने हार मान ली और वहाँ से चला गया। इसके बाद स्वर्गदूत आए और उन्होंने यीशु की सेवा की।
प्रश्न 8: यह कहानी हमारे जीवन में किस प्रकार उपयोगी है?
उत्तर: यह कहानी हमें सिखाती है कि:
हर प्रलोभन और परीक्षा का सामना हम ईश्वर के वचनों और उनके मार्गदर्शन से कर सकते हैं। हमें अपने विश्वास में दृढ़ रहना चाहिए और केवल परमेश्वर पर निर्भर रहना चाहिए। कठिन समय के बाद ईश्वर का आशीर्वाद हमेशा मिलता है।
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