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बाइबल कहानी :"नूह और जलप्रलय"की कहानी | Bible story : The Story of"Noah and the Flood

बाइबिल की कहानी : पुराने नियम की कहानी | "नूह और जलप्रलय" | Bible Story : Old Testament Stories | The Story of "Noah and the Great Flood"

बाइबल कहानी :"नूह और जलप्रलय"की कहानी | Bible story : The Story of"Noah and the Flood"

आपका इस ब्लॉग पर हार्दिक स्वागत है। यहाँ आपको बाइबल के वचन, शिक्षाएँ, प्रेरणादायक कहानियाँ और प्रार्थनाएँ पढ़ने को मिलेंगी। इस ब्लॉग का उद्देश्य है आपके जीवन में आत्मिक शांति और परमेश्वर के अनुग्रह को पहुँचाना।

हम आशा करते हैं कि यह ब्लॉग आपके विश्वास को मजबूत करेगा और आपको जीवन के कठिन समय में मार्गदर्शन और प्रेरणा प्रदान करेगा।

हम आशा करते हैं कि आप सभी प्रभु के असीम प्रेम और अनुग्रह का अनुभव कर रहे होंगे। आज के इस ब्लॉग में, हम एक ऐसी प्रेरणादायक बाइबल कहानी पर चर्चा करेंगे, जो न केवल हमें आत्मिक मार्गदर्शन देती है, बल्कि जीवन के कठिन समय में साहस और विश्वास बनाए रखने की सीख भी प्रदान करती है।

यह कहानी है – "नूह और जलप्रलय"।

कहानी पढ़ने से पहले, आइए प्रार्थना करें:

हे प्रभु,हम आपके प्रेम और करुणा के लिए धन्यवाद करते हैं। आपने नूह के माध्यम से सिखाया कि विश्वास और आपकी आज्ञा का पालन कठिन समय में भी हमें सुरक्षित रखता है। जैसे आपने नूह को अपनी कृपा और सुरक्षा दी, वैसे ही हमें भी सही राह दिखाएं। हमें धैर्य और समझ दें, ताकि हम आपके वचनों का पालन करते हुए आपके बताए मार्ग पर चल सकें। हमारे परिवारों को आशीष दें और हमारे जीवन को आपकी शांति और अनुग्रह से भर दें। यह प्रार्थना हम आपके पवित्र नाम में करते हैं।आमेन।

आइए, इस कहानी को विस्तार से समझते हैं।

१.पृष्ठभूमि: पाप की वृद्धि :

बहुत समय पहले, जब पृथ्वी पर मानव जाति का विस्तार हो रहा था, लोग परमेश्वर की शिक्षाओं को भूलने लगे थे। उनका जीवन स्वार्थ, हिंसा और अन्याय से भर गया था। उनकी नैतिकता और आध्यात्मिकता पूरी तरह से नष्ट हो चुकी थी। वे केवल अपने व्यक्तिगत सुख और लाभ के लिए जी रहे थे, और उनके विचार निरंतर बुराई की ओर बढ़ते जा रहे थे।

परमेश्वर ने यह सब देखा और उन्हें बहुत खेद हुआ। उन्होंने सोचा, "मैंने मनुष्य को अपने स्वरूप में बनाया था, लेकिन अब उनका हर विचार और कर्म बुराई से भरा हुआ है।" यह स्थिति इतनी भयावह थी कि परमेश्वर ने कहा, "मैं मनुष्य को जिसकी मैं ने सृष्टि की है पृथ्वी के ऊपर से मिटा दूँगा; क्या मनुष्य, क्या पशु, क्या रेंगनेवाले जन्तु, क्या आकाश के पक्षी, सब को मिटा दूँगा, क्योंकि मैं उनके बनाने से पछताता हूँ।"

२. नूह का चयन :

परंतु इस अंधकारमय समय में एक व्यक्ति था जिसने परमेश्वर की शिक्षाओं का पालन किया। उसका नाम नूह था। नूह एक धर्मी और ईमानदार व्यक्ति था, जो परमेश्वर के साथ चलता था। उसका परिवार भी उसकी तरह धार्मिक था। परमेश्वर ने नूह को देखा और उसे मानवता की नई शुरुआत के लिए चुना। उन्होंने नूह से कहा, "पृथ्वी पर पाप इतना बढ़ गया है कि इसे नष्ट करना आवश्यक है। लेकिन तुम और तुम्हारा परिवार मेरी दृष्टि में धर्मी हो। मैं तुम्हें और तुम्हारे परिवार को बचाऊँगा।

३. जहाज़ बनाने का आदेश:

परमेश्वर ने नूह से कहा, "मैं पृथ्वी पर एक जलप्रलय लाने वाला हूँ, जो हर जीवित प्राणी को नष्ट कर देगा। लेकिन मैं तुम्हें और तुम्हारे परिवार को सुरक्षित रखूँगा। इस काम के लिए तुम्हें एक बड़ा जहाज़ बनाना होगा।"

"यह जहाज़ गोपेर वृक्ष की लकड़ी से बनाना। इसे तीन मंजिलों का बनाना और इसे भीतर और बाहर से राल लगाकर जलरोधक बनाना। इसकी लंबाई तीन सौ हाथ, चौड़ाई पचास हाथ, और ऊँचाई तीस हाथ होगी। जहाज़ में एक खिड़की और एक द्वार बनाना। यह इतना बड़ा होगा कि इसमें तुम, तुम्हारा परिवार, और पृथ्वी के हर जीव-जंतु की एक-एक जोड़ी समा सके।"

परमेश्वर ने नूह से कहा, "जब जलप्रलय आएगा, तो यह जहाज़ तुम्हारे और जहाज़ में आने वाले सभी जीवों के लिए सुरक्षा का स्थान होगा।"

४. नूह का धैर्य और समाज की प्रतिक्रिया:

नूह ने परमेश्वर के आदेश का पालन किया और जहाज़ का निर्माण शुरू किया। यह कार्य बहुत बड़ा और कठिन था, लेकिन नूह ने बिना किसी संदेह के काम करना जारी रखा। आस-पास के लोग उसे देखकर हँसते और उसका मजाक उड़ाते। वे कहते, "इस सूखी भूमि पर इतनी बड़ी नाव बनाने का क्या मतलब है?" लेकिन नूह ने उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया। उसने अपने परिवार के साथ मिलकर काम किया और परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन किया।

५. जीव-जंतु और भोजन की तैयारी:

जब जहाज़ तैयार हो गया, परमेश्वर ने नूह से कहा, "प्रत्येक जीव-जंतु की एक-एक जोड़ी जहाज़ में लाओ – शुद्ध पशुओं के सात-सात जोड़े और अशुद्ध पशुओं के दो-दो जोड़े। पक्षियों और भूमि पर रेंगने वाले जन्तुओं को भी लाओ। साथ ही, अपने और सभी जीवों के लिए पर्याप्त भोजन जमा करो।"

नूह और उसके परिवार ने सभी तैयारियाँ पूरी कीं। उन्होंने भोजन और पानी जमा किया और सभी जीव-जंतुओं को जहाज़ में जगह दी। यह कार्य भी कठिन था, लेकिन नूह ने पूरे समर्पण और धैर्य के साथ इसे पूरा किया।

६. जलप्रलय का आरंभ:

जब सभी तैयारियाँ पूरी हो गईं, परमेश्वर ने कहा, "अब तुम और तुम्हारा परिवार जहाज़ में प्रवेश करो।" नूह, उसकी पत्नी, उसके तीन बेटे – शेम, हाम, और येपेत – और उनकी पत्नियाँ जहाज़ में प्रवेश कर गए। साथ ही, हर प्रकार के जीव-जंतु भी जहाज़ में आ गए। जब सभी अंदर आ गए, तो परमेश्वर ने स्वयं जहाज़ का द्वार बंद कर दिया।

सातवें दिन, भारी बारिश शुरू हो गई। गहरे समुद्र के सोते फूट पड़े और आकाश के झरोखे खुल गए। पानी लगातार चालीस दिन और चालीस रात बरसता रहा।

७. प्रलय का भयावह दृश्य:

जलप्रलय का दृश्य अत्यंत भयानक था। पानी बढ़ता गया और हर जीवित प्राणी नष्ट हो गया – पक्षी, पशु, और मनुष्य। बड़े-बड़े पहाड़ भी पानी में डूब गए। पृथ्वी पर हर चीज़ का विनाश हो गया। केवल नूह और उसके परिवार के लोग, और जहाज़ में रहने वाले जीव ही बचे।

८. जहाज़ में जीवन:

जहाज़ में नूह और उसके परिवार के लिए जीवन आसान नहीं था। वे जीव-जंतुओं की देखभाल करते थे, भोजन देते थे और रोज़ परमेश्वर से प्रार्थना करते थे। यह समय उनके विश्वास और धैर्य की परीक्षा था। वे जानते थे कि यह सब परमेश्वर की योजना का हिस्सा था और उन्हें परमेश्वर पर विश्वास रखना था।

९. जलप्रलय का अंत:

150 दिनों के बाद, पानी धीरे-धीरे घटने लगा। परमेश्वर ने पृथ्वी पर एक तेज़ हवा बहाई, जिससे जल कम होने लगा। सातवें महीने के सत्रहवें दिन जहाज़ अरारात पर्वत पर ठहर गया।

चालीस दिनों के बाद, नूह ने जहाज़ की खिड़की खोली और एक कौआ उड़ाया। कौआ तब तक इधर-उधर उड़ता रहा जब तक पानी पूरी तरह सूख नहीं गया। फिर नूह ने एक कबूतर उड़ाया, लेकिन उसे कहीं ठहरने की जगह नहीं मिली, इसलिए वह वापस लौट आया। सात दिनों के बाद नूह ने फिर से कबूतर उड़ाया। इस बार कबूतर अपनी चोंच में जैतून का पत्ता लेकर आया। इससे नूह को पता चला कि पानी कम हो गया है। तीसरी बार जब कबूतर उड़ाया गया, तो वह वापस नहीं लौटा। यह संकेत था कि भूमि पूरी तरह सूख चुकी थी।

१०. नई शुरुआत:

जब पृथ्वी पूरी तरह सूख गई, परमेश्वर ने नूह से कहा, "अब तुम और तुम्हारा परिवार जहाज़ से बाहर आओ। पक्षियों, पशुओं, और हर प्रकार के जन्तुओं को भी बाहर आने दो, ताकि वे पृथ्वी पर फलें-फूलें और अपनी संतानों से इसे भर दें।"

नूह, उसका परिवार, और सभी जीव जहाज़ से बाहर आ गए। उन्होंने नई आशा के साथ पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत की।

११. नूह का बलिदान और परमेश्वर की वाचा:

जहाज़ से बाहर आने के बाद नूह ने सबसे पहले परमेश्वर के लिए एक वेदी बनाई। उसने शुद्ध पशुओं और पक्षियों को लेकर होमबलि चढ़ाया। यह बलिदान परमेश्वर ने स्वीकार किया।

परमेश्वर ने कहा, "मैं फिर कभी पृथ्वी को इस प्रकार नष्ट नहीं करूँगा। अब से जब तक पृथ्वी बनी रहेगी, तब तक बोने और काटने का समय, ठंड और गर्मी, दिन और रात चलते रहेंगे।"

परमेश्वर ने धनुष को वाचा का चिन्ह बनाया। उन्होंने कहा, "जब भी बादल आएँगे और धनुष दिखेगा, मैं अपनी वाचा को स्मरण करूँगा।"

निष्कर्ष:

यह कहानी हमें सिखाती है कि जब मानव पाप करता है, तो परमेश्वर न्याय करते हैं। लेकिन उनकी दया और अनुग्रह धर्मियों के साथ हमेशा रहते हैं। यह हमें परमेश्वर के प्रति विश्वास और आज्ञाकारिता के महत्व को समझने की शिक्षा देती है।

नूह की यह कहानी केवल अतीत की घटना नहीं है, बल्कि आज भी हमारे जीवन के लिए महत्वपूर्ण है। यह हमें यह सिखाती है कि विश्वास, धैर्य, और परमेश्वर के प्रति समर्पण कठिन परिस्थितियों में भी हमें मार्गदर्शन और आशा प्रदान करते हैं। जब हम परमेश्वर के मार्ग पर चलते हैं, तो वह हमें अपनी सुरक्षा और आशीर्वाद देता है।

प्रश्न-उत्तर (Q & A):

"नूह और जलप्रलय" कहानी पर आधारित 10 प्रश्न और उत्तर

प्रश्न १ : नूह कौन थे,और उन्हें परमेश्वर ने क्यों चुना?

उत्तर :नूह एक धर्मी और ईमानदार व्यक्ति थे, जो परमेश्वर की शिक्षाओं का पालन करते थे। जब पृथ्वी पर पाप बढ़ गया, तो परमेश्वर ने नूह को मानवता की नई शुरुआत के लिए चुना।

प्रश्न २ : परमेश्वर ने नूह को क्या आदेश दिया?

उत्तर :परमेश्वर ने नूह को गोपेर वृक्ष की लकड़ी से एक बड़ा जहाज़ बनाने का आदेश दिया, जिसमें नूह, उसका परिवार और पृथ्वी के सभी जीव-जंतुओं की जोड़ी सुरक्षित रह सके।

प्रश्न ३ :नूह ने जहाज़ बनाने के दौरान समाज से कैसी प्रतिक्रिया का सामना किया?

उत्तर :समाज के लोग नूह का मजाक उड़ाते थे और कहते थे, "सूखी भूमि पर जहाज़ बनाने का क्या मतलब है?" लेकिन नूह ने उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया और परमेश्वर के आदेश का पालन किया।

प्रश्न ४ : नूह के जहाज़ में कितने प्रकार के जीव-जंतु लाए गए?

उत्तर : नूह ने शुद्ध पशुओं के सात-सात जोड़े और अशुद्ध पशुओं के दो-दो जोड़े जहाज़ में लाए। साथ ही पक्षियों और भूमि पर रेंगने वाले जन्तुओं को भी जहाज़ में रखा।

प्रश्न ५ : जलप्रलय कितने दिनों तक चला?

उत्तर : जलप्रलय लगातार चालीस दिन और चालीस रात तक चला, जिससे पूरी पृथ्वी जलमग्न हो गई।

प्रश्न ६ : नूह ने जलप्रलय के अंत की पुष्टि कैसे की?

उत्तर: नूह ने जहाज़ की खिड़की से एक कौआ और एक कबूतर को उड़ाया। कबूतर ने लौटकर अपनी चोंच में जैतून का पत्ता लाया, जिससे नूह को पता चला कि जल कम हो गया है।

प्रश्न ७ : जहाज़ कहाँ आकर ठहरा?

उत्तर: जहाज़ सातवें महीने के सत्रहवें दिन अरारात पर्वत पर ठहरा।

प्रश्न ८ : नूह ने जहाज़ से बाहर आने के बाद सबसे पहले क्या किया?

उत्तर: नूह ने परमेश्वर के लिए एक वेदी बनाई और शुद्ध पशुओं और पक्षियों की होमबलि चढ़ाई।

प्रश्न ९ : परमेश्वर ने अपनी वाचा का चिन्ह क्या बनाया?

उत्तर: परमेश्वर ने धनुष को अपनी वाचा का चिन्ह बनाया और कहा कि जब भी बादल आएँगे और धनुष दिखेगा, वह अपनी वाचा को स्मरण करेंगे।

प्रश्न १० : "नूह और जलप्रलय" कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती है?

उत्तर: यह कहानी सिखाती है कि विश्वास, धैर्य, और परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारिता से कठिन परिस्थितियों में भी सुरक्षा और मार्गदर्शन मिलता है।

अगर आपको यह ब्लॉग प्रेरणादायक लगा, तो कृपया इसे अपने मित्रों और परिवार के साथ साझा करें। आपकी प्रतिक्रियाएँ और सुझाव हमें और बेहतर सामग्री प्रदान करने के लिए प्रेरित करेंगे। प्रभु के मार्ग पर चलते रहें और उनकी योजनाओं पर विश्वास बनाए रखें। जय मसीह की!

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